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भगवान कौन है?




भगवान् शब्द बनता है, भगवान् इसमें "भग" धातु है। भग धातु का ६ अर्थ है- ९. पूर्ण ज्ञान, २ पूर्ण बल, ३. पूर्ण चन, ४. पूर्ण यश ५ पूर्ण सौंदर्य और ६. पूर्ण त्याग। विष्णुपुराण ६.५.७४ में भी यही बात कहा कि "सम्पूर्ण ऐश्वर्य को भगवान कहते. है।" इस प्रकार भगवान शब्द से यह तात्पर्य हुआ कि जो छह गुणों से उक्त हो उसे भगवान कहते है, दुसरे शब्दों में कहें तो ये छहों गुण जिसमे नित्य (सदा) रहते हो उन्हें भगवान कहते हैं।

ऐश्वर्यस्य समग्रस्य
वीर्यस्य यशसः श्रीयः
ज्ञान-वैराग्ययोश चैव
शानं भग इतिंगना
( विष्णु पुराण 6.5.47)




उपरोक्त श्लोक में पराशर मुनि जो श्रील व्यासदेव के पिता हैं श्री भगवान के बारे में कहते हैं कि छः ऐश्वर्य यथा धन, बल,यश, रूप, ज्ञान एवं वैराग्य परम पुरुषोत्तम भगवान में पूर्ण मात्रा में विद्यमान होते हैं 

ऐश्वर्यस्य समग्रस्य, जिसके पास सारी संपत्ति, वीर्यस्य सारी ताकत, सारी श्रद्धा यशसः, सारी सुंदरता, सारा ज्ञान और सारा त्याग है, वह भगवान है। 




संपत्ति - इस दुनिया में बहुत सारे अमीर लोग हैं लेकिन कोई भी यह दावा नहीं कर सकता कि वह कृष्ण से ज्यादा अमीर है या यह कह सकते हैं कि सारी दौलत उसके पास है। श्रीमद्भागवत से हम जानते हैं कि भगवान कृष्ण की 16,108 पत्नियाँ थीं। सभी पत्नियाँ अलग-अलग महल में रहती थीं और सभी पत्नियों के साथ उनके महल में कृष्ण भी हमेशा मौजूद रहते थे। उन्होंने उन सभी के साथ उपस्थित रहने के लिए अपना विस्तार किया है जो किसी भी सामान्य व्यक्ति के लिए असंभव है। वह सर्वशक्तिमान है.

शक्ति - यदि हम कृष्ण की लीलाओं को पढ़ें तो पता चलता है कि उन्होंने मात्र 3 महीने की उम्र से ही कई राक्षसों का सामना किया और उनका वध किया। उन्होंने अपनी प्रजा की रक्षा के लिए गोवर्धन को अपनी सबसे छोटी उंगली से उठा लिया।

प्रसिद्धि - हम सभी कृष्ण के भक्त, उन्हें जानते हैं और उनकी महिमा करते हैं। सिर्फ हम ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में वह भगवान गीता की वजह से मशहूर हैं। कई लोग भगवद गीता के सिद्धांतों का पालन कर रहे हैं। भगवद्गीता की प्रसिद्धि कृष्ण की प्रसिद्धि है।

सौंदर्य - इस सौंदर्य से कृष्ण की सुंदरता का एहसास किया जा सकता है। सभी खूबसूरत चीजें उन्होंने बनाई हैं। कोई कल्पना कर सकता है कि अगर भगवान ने यह खूबसूरती बनाई होगी तो वह कितनी खूबसूरत होगी। उनके पास असीमित सुंदरता है।

ज्ञान - कोई व्यक्ति केवल अपनी सुंदरता से ही आकर्षक नहीं होता बल्कि अपने पास मौजूद ज्ञान से भी आकर्षक होता है। कृष्ण एक महान वैज्ञानिक और दार्शनिक हैं। उन्होंने भगवद्गीता के माध्यम से सभी को जो ज्ञान दिया है वह असंगत है।

त्याग - कृष्ण पूर्ण त्याग से युक्त हैं। बहुत सी चीजें कृष्ण के अधीन काम कर रही हैं, भले ही वह यहां मौजूद नहीं हैं। बिल्कुल एक कारखाने की तरह जो बिना अपने मालिक के भी काम करता रहता है। इसी प्रकार, कृष्ण की शक्तियाँ उनके सहायकों, देवताओं के निर्देशन में काम कर रही हैं। कृष्ण स्वयं भौतिक संसार से अलग हैं।

उनके सभी गुणों को उनकी लीलाओं के माध्यम से देखा जा सकता है जिसे हम शास्त्रों के माध्यम से जान सकते हैं।



श्रीमद् भागवतम 11.4.2

श्लोक
श्रीद्रुमिल उवाच
यो वा अनन्तस्य गुणाननन्ता-
ननुक्रमिष्यन् स तु बालबुद्धि: ।
रजांसि भूमेर्गणयेत् कथञ्चित्
कालेन नैवाखिलशक्तिधाम्न: ॥ २ ॥

अनुवाद
श्री द्रुमिल ने कहा : अनन्त भगवान् के अनन्त गुणों का वर्णन करने या गिनने का प्रयास करने वाले व्यक्ति की बुद्धि मूर्ख बालक जैसी होती है। भले ही कोई महान् प्रतिभाशाली व्यक्ति किसी तरह से पृथ्वी की सतह के धूल-कणों की गिनती करने का समय-अपव्ययी प्रयास कर ले, किन्तु ऐसा व्यक्ति भगवान् के आकर्षक गुणों की गणना नहीं कर सकता, क्योंकि भगवान् समस्त शक्तियों के आगार हैं।

श्रीमद् भागवतम 1.1.1

श्लोक
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
जन्माद्यस्य यतोऽन्वयादितरतश्चार्थेष्वभिज्ञ: स्वराट्
तेने ब्रह्म हृदा य आदिकवये मुह्यन्ति यत्सूरय: ।
तेजोवारिमृदां यथा विनिमयो यत्र त्रिसर्गोऽमृषा
धाम्ना स्वेन सदा निरस्तकुहकं सत्यं परं धीमहि ॥ १ ॥

अनुवाद
हे प्रभु, हे वसुदेव-पुत्र श्रीकृष्ण, हे सर्वव्यापी भगवान्, मैं आपको सादर नमस्कार करता हूँ। मैं भगवान् श्रीकृष्ण का ध्यान करता हूँ, क्योंकि वे परम सत्य हैं और व्यक्त ब्रह्माण्डों की उत्पत्ति, पालन तथा संहार के समस्त कारणों के आदि कारण हैं। वे प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से सारे जगत से अवगत रहते हैं और वे परम स्वतंत्र हैं, क्योंकि उनसे परे अन्य कोई कारण है ही नहीं। उन्होंने ही सर्वप्रथम आदि जीव ब्रह्माजी के हृदय में वैदिक ज्ञान प्रदान किया। उन्हीं के कारण बड़े-बड़े मुनि तथा देवता उसी तरह मोह में पड़ जाते हैं, जिस प्रकार अग्नि में जल या जल में स्थल देखकर कोई माया के द्वारा मोहग्रस्त हो जाता है। उन्हीं के कारण ये सारे भौतिक ब्रह्माण्ड, जो प्रकृति के तीन गुणों की प्रतिक्रिया के कारण अस्थायी रूप से प्रकट होते हैं, वास्तविक लगते हैं जबकि ये अवास्तविक होते हैं। अत: मैं उन भगवान् श्रीकृष्ण का ध्यान करता हूँ, जो भौतिक जगत के भ्रामक रूपों से सर्वथा मुक्त अपने दिव्य धाम में निरन्तर वास करते हैं। मैं उनका ध्यान करता हूँ, क्योंकि वे ही परम सत्य हैं।

श्री ब्रह्म-संहिता 5.1
ईश्वरः परमः कृष्णः
सच्चिदानंद-विग्रहः
अनादिर आदि गोविंदः
सर्व-कारण-करणम्


कृष्ण जिन्हें गोविंदा के नाम से जाना जाता है, सर्वोच्च देवता हैं। उसके पास एक शाश्वत आनंदमय आध्यात्मिक शरीर है। वह सबका मूल है। उसकी कोई अन्य उत्पत्ति नहीं है और वह सभी कारणों का प्रमुख कारण है।



कुरूक्षेत्र के युद्धक्षेत्र में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं

बीजी. 9.17
पितृहमस्य जगतो माता धाता पितामह:।
वेद्यं पवित्रम् ॐकार ऋक् सम यजुरेव च ॥ 17 ॥


मैं इस ब्रह्माण्ड का पिता, माता, आश्रय तथा पितामह हूँ। मैं ज्ञेय (जानने योग्य), शुद्धिकर्ता तथा ओंकार हूँ। मैं ऋग्वेद, सामवेद तथा यजुर्वेद भी 


श्रीचैतन्य चरितामृत adi.5.142
एकले ईश्वर कृष्ण, आर सब भृत्य ।
यारे यैछे नाचाय, से तैछे करे नृत्य ॥142॥

अनुवाद
एकमात्र भगवान् कृष्ण ही परम नियन्ता हैं और अन्य सभी उनके सेवक हैं। वे जैसा चाहते हैं, वैसे उन्हें नचाते हैं।




श्रीमद् भागवतम 10.14.7
गुणात्मनस्तेऽपि गुणान् विमातुं
हितावतीर्णस्य क ईशिरेऽस्य ।
कालेन यैर्वा विमिता: सुकल्पै-
र्भूपांशव: खे मिहिका द्युभास: ॥ ७ ॥

अनुवाद
समय के साथ, विद्वान दार्शनिक या विज्ञानी, पृथ्वी के सारे परमाणु, हिम के कण या शायद सूर्य, नक्षत्र तथा ग्रहों से निकलने वाले ज्योति कणों की भी गणना करने में समर्थ हो सकते हैं किन्तु इन विद्वानों में ऐसा कौन है, जो आप में अर्थात् पूर्ण पुरुषोत्तम परमेश्वर में निहित असीम दिव्य गुणों का आकलन कर सके। ऐसे भगवान् समस्त जीवात्माओं के कल्याण के लिए इस धरती पर अवतरित हुए हैं।


कृष्ण गुणात्मा हैं क्योंकि वे इस भौतिक जगत में अवतरित होते हैं और अपने ईश्वरीय गुणों को प्रकट करके तथा अन्यों में उनकी प्रेरणा देकर धर्म की पुन: स्थापना करते हैं। 
भगवान् हर जीव के लाभ हेतु एक विशिष्ट आध्यात्मिक गुण प्रदर्शित करते हैं। चूँकि इस सृष्टि में असंख्य जीव हैं अतएव भगवान् अनन्त गुण प्रकट करते हैं। 






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