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Pranaam Mantra -प्रणाम मंत्र





Srila Prabhupada Pranam Mantra (प्रभुपाद प्रणाम मंत्र )


नम ॐ विष्णु पादाय कृष्ण प्रेष्ठाय भूतले

श्रीमते भक्तिवेदान्त स्वामिन् इति नामिने।।

नमस्ते सारस्वते देवे गौर - वाणी प्रचारिणे।

निर्विशेष- शून्यवादी - पाश्चात्य देश-तारिणे ।।

Meaning of the mantra: 

मैं कृष्णकृपा श्रीमूर्ति श्री श्रीमद् ए०सी० भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद को सादर प्रणाम करता हूँ जो दिव्य नाम की शरण लेने के कारण इस पृथ्वी पर भगवान् श्रीकृष्ण को अत्यन्त प्रिय हैं।कृपा करके श्रीचैतन्य महाप्रभु हे गुरुदेव! सरस्वती गोस्वामी के दास! आपको मेरा सादर विनम्र प्रणाम है। आप के सन्देश का प्रचार कर रहे हैं तथा निराकारवाद एवं शुन्यवाद से व्याप्त पाश्चात्य देशों का उद्धार कर रहे हैं।


Panch-tattva Pranam Mantra (पंच-तत्व प्रणाम मंत्र)



जय श्री कृष्ण चैतन्य, प्रभु नित्यानंद,
श्री अद्वैत, गदाधर, श्रीवास आदि गौर भक्त वृन्द ।।

Meaning of the mantra:

मैं श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु श्री नित्यानंद प्रभु, श्री अद्वैताचार्य प्रभु, श्री गदाधर पंडित प्रभु तथा श्रीवास प्रभु सहित अन्यान्य सभी गौरभक्तों को प्रणाम करता हूँ।

Shri Krishna Pranam Mantra (श्री कृष्ण प्रणाम मंत्र)



हे कृष्ण करुणा-सिंधु, दीन-बन्धु जगत्पते । 
गोपेश गोपिकाकान्त राधाकान्त नमोस्तुते ॥ 

Meaning of the mantra:

हे कृष्ण! आप दुखियों के सखा तथा सृष्टि के उद्गम हैं। आप गोपियों के स्वामी तथा राधारानी के प्रेमी हैं। मैं आपको सादर प्रणाम करता हूँ।

Radha Rani Puranam Mantra (राधा रानी प्रणाम मंत्र)



तपत-कांचन गौरांगी, राधे वृन्दावनेश्वरी 
वृषभानु सुते देवी, प्रणमामि हरी प्रिये 

Meaning of the mantra: 

मैं उन राधारानी को प्रणाम करता हूँ जिनकी शारीरिक कान्ति पिघले सोने के सदृश है, जो वृन्दावन की महारानी हैं। आप राजा वृषभानु की पुत्री हैं और भगवान् कृष्ण को अत्यन्त प्रिय हैं।





Ram Pranam Mantra (राम प्रणाम मंत्र)




रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे । रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः ।।

दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे च जनकात्मजा । पुरतो मारुतिर्यस्य तं वंदे रघुनन्दनम् ॥

Meaning of the mantra: 

राम, रामभद्र, रामचंद्र, विधातृस्वरूप, रघुनाथ प्रभु सीतापति को नमस्कार है। जिनकी दाय और लक्ष्मणजी, बायीं ओर जानकी जी और सामने हनुमान जी विराजमान हैं, उन रघुनाथजी की मैं वंदना करता हूँ।



श्रील भक्तिसिद्धान्त सरस्वती प्रणति


नमः ॐ विष्णुपादाय कृष्ण-प्रेष्ठाय भूतले ।
श्रीमते भक्तिसिद्धान्त- सरस्वती इति नामिने।।
श्रीवार्षभानवी देवी दयिताय कृपाब्धये।
कृष्ण-सम्बन्ध - विज्ञान - दायिने प्रभवे नमः।।
माधुय्यज्ज्वल - प्रेमाढ्य श्रीरूपानुग-भक्तिद।
श्रीगौर-करूणा-शक्ति-विग्रहाय नमोऽस्तुते।।
नमस्ते गौर- वाणी- श्रीमूर्तये दीन-तारिणे।
रूपानुग-विरूद्धाऽपसिद्धान्त-ध्वान्त-हारिणे।।


Meaning of the mantra: 

कृष्ण-सम्बन्ध - विज्ञान के दाता, कृष्ण के प्रिय, श्रीवार्षभावनीदेवी राधिका के प्रियपात्र, इस भूतल पर अवतीर्ण ॐ विष्णुपाद श्रीमद्भक्तिसिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी नामक कृपा-वारिधि प्रभु की वन्दना करता हूँ। जो माधुर्य के द्वारा उज्ज्वलीकृत, प्रेमपूर्ण, श्रीरूपानुग-भक्ति-दानकारी तथा श्रीगौरांग-महाप्रभु की करूणा-शक्ति के विग्रह-स्वरूप हैं, उन सरस्वती ठाकुर को मैं पुनः नमस्कार करता हूँ। जो गौर-वाणी के मूर्तिमान स्वरूप हैं, दोनों को तारने वाले हैं, तथा श्रील रूप गोस्वामी द्वारा प्रणीत भक्तिमय सेवा के सिद्धांतों से विरूद्ध कोई कथन सहन नहीं करते।


श्रील गौरकिशोर-प्रणति

श्रील गौरकिशोर-प्रणति
नमो गौरकिशोराय साक्षाद्वैराग्य मूर्तये ।
विप्रलम्भ-रसाम्भोधे पादाम्बुजाय ते नमः।।

Meaning of the mantra: 

मैं गौरकिशोर दास बाबाजी के चरणकमलों में सादर नमन करता हूँ, जो साक्षात वैराग्य की मूर्ति हैं, एवं कृष्ण के प्रगाढ़ प्रेम व विरह भाव में ही सदा निमग्न रहते हैं।

श्रील भक्तिविनोद ठाकुर प्रणति

गौराविर्भाव-भूमेस्त्वं निर्देष्टा सज्जन-प्रियः।
वैष्णव सार्वभौमः श्रीजगन्नाथाय ते नमः।

Meaning of the mantra: 

मैं उन जगन्नाथ दास बाबाजी को सादर नमन करता हूँ, जो समस्त वैष्णव समुदाय द्वारा सम्मानित हैं तथा जिन्होंने गौरांग महाप्रभु की आविर्भाव भूमि की खोज की थी।

श्रीवैष्णव-प्रणाम

वाञ्छा कल्पतरुभ्यश्च कृपासिन्धुभ्य एव च।
पतितानां पावनेभ्यो वैष्णवेभ्यो नमो नमः।।

Meaning of the mantra: 

भगवान् के उन समस्त वैष्णव भक्तों को सादर नमस्कार करता हूँ जो सबकी इच्छा को पूर्ण करने में कल्पतरू के समान हैं, दया के सागर हैं तथा पतितों का उद्धार करने वाले हैं।

श्रीचैतन्यमहाप्रभु वन्दना

नमो महावदान्याय कृष्ण-प्रेम-प्रदाय है।
कृष्णाय कृष्ण चैतन्य नाम्ने गौरविषे नमः

Meaning of the mantra: 

हे परम करुणामय अवतारा आप स्वयं कृष्ण हैं, जो श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु के रूप में प्रकट हुए हैं। आपने श्रीमती राधारानी का गौरवर्ण धारण किया है और आप कृष्ण के विशुद्ध प्रेम का सर्वत्र वितरण कर रहे हैं। हम आपको सादर नमन करते हैं।

श्रीपञ्चतत्त्व-प्रणाम

पञ्चतत्त्वात्मक कृष्ण भक्तरूपस्वरूपकम्।
भक्तावतारं भक्ताख्यं नमामि भक्तशक्तिकम्।।

Meaning of the mantra: 

भक्तरूप (चैतन्य महाप्रभु), भक्तस्वरूप (नित्यानंद प्रभु), भक्तावतार (अद्वैताचार्य), भक्त ( श्रीवास प्रभु), भक्तशक्ति (गदाधर पंडित) इन पञ्चतत्त्वात्मक भगवान् श्रीकृष्ण को मैं प्रणाम करता हूँ।

श्रीसम्बन्धाधिदेव प्रणाम

जयतां सूरतौ पङ्गोर्मम मन्दमतेर्गती।
मत्सर्वस्वपदाम्भोजौ राधामदनमोहनौ।।

Meaning of the mantra: 

राधा-मदनमोहन, जो सदैव दिव्य आनंदमय लीलाओं में मग्न रहते हैं, उनकी जय । क्योंकि वे परमदयालू हैं, मेरे जैसे पंगु, मन्दमयी एवं अज्ञानी के रक्षक हैं। उनके नों चरणकमल मेरा सर्वस्व है, मैं उन्हें सादर प्रणाम करता हूँ।

श्रीअभिद्येयाधिदेव प्रणाम

दिव्यद्वृन्दारण्य कल्पद्रुमाधः। 
श्रीमद्रत्नागार सिंहासनस्थौ ।
श्रीमद्ाधा श्रीलगोविन्ददेवी 
प्रेष्ठालीभिः सेव्यमानौ स्मरामि ।।

Meaning of the mantra: 

परमशोभामय श्रीवृन्दावन में कल्पवृक्ष के नीचे, परमसुन्दर रत्नों के द्वारा बने हुए भवन में मणिमय सिंहासन पर विराजमान एवं अपनी अतिशय प्रिय श्रीललिता-विशाखा आदि सखियों के द्वारा प्रतिक्षण जिनकी सेवा होती रहती हैं, मैं उन श्रीमती राधिका एवं श्रीमान् गोविन्ददेवजी का स्मरण करता हूँ।

श्रीप्रयोजनाधिदेव प्रणाम

श्रीमान् रासरसारंभी वंशीवटतटस्थितः।
कर्षन वेणुस्वनैर्गोपीगोपीनाथः श्रियेऽस्तु नः ।।

Meaning of the mantra: 

वे श्रीराधागोपीनाथ हमारी कुशलता के लिए विद्यमान रहें क्योंकि वे रास सम्बन्धी रस का आरंभ करने वाले हैं, वे वंशीवट के नीचे विराजमान होकर, अपनी वंशीध्वनि के द्वारा गोपीयों को अपनी ओर आकर्षित करते रहते हैं।



















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