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जप ध्यान- Mantra Meditation

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मंत्र का अर्थ संस्कृत में "मन" का अर्थ है मन और "त्र" का अर्थ है राहत देना। इस प्रकार "मंत्र" का अर्थ हुआ मन को शांत करना। इसलिए मन को पवित्र नाम के जाप के माध्यम से सांसारिक विचारों और गतिविधियों से मुक्त करना होगा।  "महा-मंत्र" का अर्थ है मुक्ति के लिए महान जप। हरे कृष्ण महा-मंत्र इतना शक्तिशाली है कि यदि कोई किसी भी स्थिति में इसका जाप करता है तो उसे भौतिक अस्तित्व की सभी बुराइयों से बचाया जा सकता है। हम जप क्यों करते हैं?       हरेर नाम हरेर नाम हरेर नामैव केवलम् कलौ नास्त्य एव नास्त्य एव नास्त्य एव गतिर अन्यथा कलि के इस युग में आध्यात्मिक प्रगति के लिए, कोई विकल्प नहीं है, कोई विकल्प नहीं है, पवित्र नाम, पवित्र नाम, भगवान के पवित्र नाम का कोई विकल्प नहीं है आध्यात्मिक जीवन में प्रगति के लिए, शास्त्र सत्ययुग में ध्यान, त्रेतायुग में भगवान विष्णु की संतुष्टि के लिए यज्ञ और द्वापर युग में मंदिर में भगवान की भव्य पूजा करने की सलाह देते हैं।  लेकिन कलियुग में व्यक्ति केवल भगवान के पवित्र नाम का जाप करके ही आध्यात्मिक प्रगति प्राप्त कर सकता है हरे

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भगवान कौन है?

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भगवान् शब्द बनता है, भगवान् इसमें "भग" धातु है। भग धातु का ६ अर्थ है- ९. पूर्ण ज्ञान, २ पूर्ण बल, ३. पूर्ण चन, ४. पूर्ण यश ५ पूर्ण सौंदर्य और ६. पूर्ण त्याग। विष्णुपुराण ६.५.७४ में भी यही बात कहा कि "सम्पूर्ण ऐश्वर्य को भगवान कहते. है।" इस प्रकार भगवान शब्द से यह तात्पर्य हुआ कि जो छह गुणों से उक्त हो उसे भगवान कहते है, दुसरे शब्दों में कहें तो ये छहों गुण जिसमे नित्य (सदा) रहते हो उन्हें भगवान कहते हैं। ऐश्वर्यस्य समग्रस्य वीर्यस्य यशसः श्रीयः ज्ञान-वैराग्ययोश चैव शानं भग इतिंगना ( विष्णु पुराण 6.5.47) उपरोक्त श्लोक में पराशर मुनि जो श्रील व्यासदेव के पिता हैं श्री भगवान के बारे में कहते हैं कि छः ऐश्वर्य यथा धन, बल,यश, रूप, ज्ञान एवं वैराग्य परम पुरुषोत्तम भगवान में पूर्ण मात्रा में विद्यमान होते हैं  ऐश्वर्यस्य समग्रस्य, जिसके पास सारी संपत्ति , वीर्यस्य सारी ताकत , सारी श्रद्धा यशसः, सारी सुंदरता , सारा ज्ञान और सारा त्याग है, वह भगवान है।  संपत्ति  - इस दुनिया में बहुत सारे अमीर लोग हैं लेकिन कोई भी यह दावा नहीं कर सकता कि वह कृष्ण से ज्यादा अमीर है या यह क

Significance of Radha Kund - राधा कुंड का महत्व

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मथुरा नामक पवित्र स्थान आध्यात्मिक दृष्टि से वैकुण्ठ से श्रेष्ठ है, क्योंकि श्रीभगवान् वहाँ प्रकट हुए थे। मथुरा पुरी से श्रेष्ठ वृन्दावन का दिव्य वन है, क्योंकि वहाँ भगवान् श्रीकृष्ण ने रासलीला रचाई थी। वृन्दावन के वन से भी श्रेष्ठ गोवर्धन पर्वत है, क्योंकि इसे भगवान् श्रीकृष्ण ने अपने दिव्य हाथ से उठाया था और यह उनकी विविध प्रेममयी लीलाओं का स्थल रहा और इन सबों में परम श्रेष्ठ श्रीराधाकुंड है, क्योंकि यह गोकुल के स्वामी भगवान् श्रीकृष्ण के अमृतमय प्रेम से आप्लावित रहता है। शास्त्रों का कथन है कि सभी प्रकार के सकाम कर्मियों में परमेश्वर हरि उसपर विशेष कृपा करते हैं, जो जीवन के उच्चतर मूल्यों सम्बन्धी ज्ञान में उन्नत होता है। ऐसे ज्ञान में उन्नत अनेक लोग (ज्ञानियों) में से जो अपने ज्ञान के बल पर व्यावहारिक रूप से मुक्त हो जाता है, वह भक्ति ग्रहण कर सकता है। ऐसा व्यक्ति अन्यों से श्रेष्ठ है। किन्तु जिसने भगवान् श्रीकृष्ण का शुद्ध प्रेम वास्तव में प्राप्त कर लिया है, वह उससे भी श्रेष्ठ है। गोपियाँ समस्त उच्चतर भक्तों से उत्कृष्ट हैं, क्योंकि वे दिव्य गोपाल- कृष्ण पर सदैव आश्रि

HOLY PLACES -क्या चीज़ किसी पवित्र स्थान को पवित्र बनाती है?

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जहां भी भगवान जाते हैं या उनका कोई अवतार या प्रतिनिधि जाता है तो वह स्थान  आध्यात्मिक रूप से जागृत हो जाता है।  जब आप इन स्थानों पर जाते हैं और आध्यात्मिक कार्य करते हैं तो वहां की गई किसी भी आध्यात्मिक साधना का लाभ कई गुना बढ़ जाता है। पवित्र स्थानों के आस-पास के दृश्य और ध्वनियाँ हमें परमात्मा तक पहुँचने में सक्षम बनाती हैं।  पवित्र स्थान   साधु-संतों को आकर्षित करते हैं और साधु-संतों की संगति हमें आध्यात्मिकता के लिए सक्षम बनाती है, इसलिए जो वहां जाता है उसे उनकी संगति का लाभ मिलता है। कोई भी कृष्ण मंदिर या कोई भी स्थान जहां उनका ध्यान केंद्रित होता है वह एक पवित्र स्थान बन जाता है। इसलिए यदि हम वृन्दावन या मायापुर जैसी जगह पर नहीं रह सकते हैं, तो हम अपने घरों को पवित्र स्थानों में बदल सकते हैं ताकि हम नियमित रूप से भगवान के मंदिरों में जा सकें। HARE KRISHNA HARE KRISHNA KRISHNA KRISHNA HARE HARE HARE RAMA HARE RAM RAM RAM HARE HARE

श्रीमती राधा रानी TWENTY-FIVE PRINCIPLE QUALITIES

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श्रीमती राधारानी में असीमित दिव्य गुण हैं,जिनमें से पच्चीस गुण प्रमुख हैं। श्रीकृष्ण श्रीमती राधारानी के इन पारलौकिक गुणों द्वारा नियंत्रित होते हैं। 1 मधुरा-मीठी: वह बहुत प्यारी है।  2  युवा: वह हमेशा किशोरी दिखती है 3 अधीर आँखें : उनकी आँखें हमेशा अधीर रहती हैं 4 उज्ज्वल मुस्कान : उनकी मुस्कान जीवंत और उज्ज्वल है 5 शरीर पर सुंदर, शुभ रेखाओं का होना : इनके शरीर पर सुंदर और शुभ रेखाएं हैं 6 शरीर की अद्भुत सुगंध : कृष्ण उनकी  शारीरिक सुगंध से बहुत प्रसन्न होते हैं 7  गीतों के विस्तार में माहिर :  श्री राधारानी गायन में निपुण हैं। 8  आकर्षक भाषण : उनकी वाणी मनमोहक होती है। 9  मजाक करने में माहिर :  श्री राधा रानी परिहास और मधुरभाषण में बड़ी निपुण हैं। 10  विनम्र: वह बहुत विनम्र है। 11  दया से भरी : वह हमेशा दया से भरी रहती है। 12  चतुर : श्री राधा रानी बड़ी चतुर हैं 13  कर्तव्यों का पालन करने में विशेषज्ञ : वह अपने कर्तव्यों का पालन करने में माहिर है। 14  शर्मीली : श्री राधा रानी बहुत शर्मीली हैं। 15  आदरणीय : वह सदैव सभी का आदर करती है 16  शांत: वह हमेशा शांत रहती है। 17  गंभीर: श्री रा

श्री राधा रानी

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  श्रीमती राधारानी के शरीर का रंग श्रीमती राधारानी का शारीरिक रंग नए गोरचन की तरह है या पिघले हुए सोने या अपने स्थिर रूप में बिजली की तरह है। राधारानी का रूप उनके अपूर्व रूप माधुर्य के कारण अत्यंत तेजोमय और दीप्तिमान है। उनकी सुंदरता की मिठास इतनी बढ़ जाती है कि वह हमेशा पहले से अधिक सुंदर दिखती है: हर दिन वह इतनी अधिक सुंदर दिखती है, जैसे कि वह पहले कभी इतनी सुंदर नहीं थी उनके शरीर का रंग हजारों बार आग से पिघला हुये सोना जैसा है और जो बहुत तेजोमय है। अपने प्रियतम श्रीकृष्ण से मिलन के समय श्री राधिका और भी तेजोमय, कोमल और दीप्तिमान हो जाती हैं। उनके स्वर्णिम तेज से वन के वृक्ष, लताएं, पक्षी और पत्तियाँ भी सुनहरी आभा से आच्छादित हो जाती हैं। श्रीमति राधारानी का शारीरिक रंग इतना तीव्र सुनहरा रंग है कि जब वह कृष्ण के बगल में खड़ी होती हैं, तो उनका शारीरिक रंग भी सुनहरा हो जाता है।

Tulsi Puja

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============================================================== Tulsi Arti   The Story of Tulasi Devi Srimati Tulasi devi is one of the most exalted devotees of the Sri Krishna. All scriptures stress on the importance of getting the mercy of Tulasi devi if one has to make progress in the path of devotion. In the Skanda Purana it is said: ‘Tulasi is auspicious in all respects. Simply by seeing, simply by touching, simply by remembering, simply by praying to, simply by bowing before, simply by hearing about or simply by sowing this tree, there is always auspiciousness. Anyone who comes in touch with the Tulasi tree in the above-mentioned ways lives eternally in the Vaikuntha world." Vrinda devi ********* Above this material world is the eternal spiritual world comprised of millions of Vaikuntha planets. The topmost planet in Vaikuntha is Goloka which is presided by Sri Krishna in His original form. Here resides Vrinda devi, an intimate associate of and an expansion of Srimati Radhara